पिछले दरवाजे से मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया पर सरकार का कब्जा
सुमन कुमार
ऐसा लगता है कि नरेंद्र मोदी सरकार अब अपने सभी ऐसे विधेयकों जिनपर संसद में विवाद है, की जगह पर अध्यादेश का रास्ता अपनाने का मन बना चुकी है। पहले तो सरकार ने मुस्लिम महिलाओं के तीन तलाक से संबंधित मसले के राज्यसभा में अटकने पर अध्यादेश के जरिये इस कानून को लागू किया और अब देश के स्वास्थ्य क्षेत्र की सर्वोच्च नियामकीय संस्था मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के संचालन के लिए प्रतिष्ठित पेशेवरों की एक समिति गठित करने के लिए अध्यादेश लाई है।
गौरतलब है कि एमसीआई के स्थान पर नए राष्ट्रीय मेडिकल आयोग के गठन से संबंधित विधेयक संसद में लंबित है। यह व्यवस्था तब तक के लिए है जब तक इस इकाई के स्थान पर नए आयोग के गठन को मंजूरी देने वाला विधेयक संसद से पारित नहीं हो जाता।
देश में मेडिकल कॉलेजों को मंजूरी देने का अधिकार एमसीआई के पास ही है और इस संस्था पर इस कार्य में भ्रष्टाचार करने के आरोप लगते हैं। देश में मेडिकल कॉलेजों के गिरते स्तर के लिए भी इसकी कार्य प्रणाली को ही जिम्मेदार माना गया है क्योंकि कॉलेजों की जांच के दौरान बिना अनिवार्य सुविधाओं वाले कॉलेजों को रिश्वत लेकर मंजूरी देने के आरोप इसके अधिकारियों पर लगते रहे हैं। हालांकि एमसीआई एक स्वायत्ता संस्था है और इसके अधिकारियों का चयन देश के प्रतिष्ठित डॉक्टरों द्वारा चुनाव के जरिये किया जाता रहा है। इसलिए एक चुनी हुई संस्था की जगह पर अब सरकार द्वारा नियुक्त लोगों की टोली इस देश के स्वास्थ्य क्षेत्र के भविष्य का निर्धारण करेगी।
भ्रष्टाचार के आरोप और मेडिकल कॉलेजों को अपारदर्शी तरीके से मान्यता देने के मामले की जांच के बीच उच्चतम न्यायालय ने मई 2016 में सरकार को एक निगरानी समिति बनाने के निर्देश दिए थे, जिसके पास नए विधेयक के पारित होने तक एमसीआई का कामकाज देखने का अधिकार होगा।
वित्त मंत्री अरूण जेटली ने आज संवाददाताओं से कहा कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने आज सुबह अध्यादेश को मंजूरी दी और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भी इसे मंजूरी दे दी है। आधिकारिक सूत्रों के अनुसार अध्यादेश एमसीआई का स्थान लेगा और परिषद की शक्तियां बोर्ड ऑफ गवर्नर्स (बीओजी) में निहित होंगी। बीओजी परिषद का गठन होने तक काम करेगा। इससे पहले 2010 में भी बोर्ड ऑफ गवर्नर्स नियुक्त किए गए थे।
आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि पहली निगरानी समिति का एक वर्ष का समय पूरा होने पर उच्चतम न्यायालय की अनुमति से 2017 में दूसरी निगरानी समिति का गठन किया गया था। दूसरी समिति की अध्यक्षता डॉ वी.के. पॉल ने की थी और इसमें एम्स (दिल्ली),पीजीआई चंडीगढ़ और निमहांस के प्रमुख चिकित्सक शामिल थे।
इस वर्ष जुलाई में इस समिति ने ‘एमसीआई द्वारा उनके निर्देशों का पालन नहीं किए जाने’ का हवाला देते हुए इस्तीफा दे दिया था। समिति ने यह भी कहा कि एमसीआई ने उसके अधिकार को भी चुनौती दी है। सूत्रों ने बताया कि ऐसे परिदृश्य में जहां उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित पैनल काम नहीं कर पा रहा है और एमसीआई का स्थान लेने वाला विधेयक लंबित है ऐसे में खास ‘त्वरित कदम’ उठाने की जरूरत है।
इस नए बोर्ड ऑफ गवर्नर्स में नीति आयोग के सदस्य डॉ वी.के. पॉल, एम्स के निदेशक रणदीप गुलेरिया सहित अनेक अस्पतालों के चिकित्सक शामिल होंगे। ये सभी दूसरी निगरानी समिति के सदस्य थे।
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